कटार से बच के और कटार के पीछे
वो छिपा भी तो इक तलवार के पीछे
तस्वीरों के लिए इसमें कीलें ना गाडिए
सहारा लिए खड़ा है कोई दीवार के पीछे
ये फासला हमारा तय कैसे करेंगे दोनो
तू सैंकड़ो में अव्वल मैं हज़ार के पीछे
कोई तेज़ रौ गाड़ी ले के तुझे गयी थी
हम दौड़ते हैं तब से हर कार के पीछे
जिन का शहर में कफ़न का कारोबार है
हसरत लिए खड़े हैं उस बीमार के पीछे
वो सर भी माँग ले तो हंस के उसे दूँगा
लेकिन वो पड़ा है इस दस्तार के पीछे
लिपट के रो रहें हम इस दीवार से
इक तस्वीर तेरी लगी है दीवार के पीछे
मुहब्बत हो गयी उस को ये भूल जा
सौ सौ इनकार खड़े हैं इकरार के पीछे
जो कहा है दिल ने लिखते रहे वही हम
कलम नही चली ये बाज़ार के पीछे
मासूम तेरी बातें जिंदा ताजमहल हैं
आगरा कौन जाये फकत मज़ार के पीछे
3 comments:
kya likha ha good suparab
कटार से बच के और कटार के पीछे
वो छिपा भी तो इक तलवार के पीछे
her lafz mein chupa hai
katar ka hi painapen...
bahut khoob
Bahut khoob likha hai aapney MasoomShayar ji.. I liked all your creations posted here.. hope to meet you someday again..
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