Wednesday, August 19, 2009

उस का कहार मैं


उस के लए हूं राह की कोई दीवार मैं
उस का प्यार हूं तो हूं गुनहगार मैं

जो दिल में है बसा वो गम कोई और है
आँख से जो गिर गयी आँसू की धार मैं

कैसे बिक सकूँगा अब ऐसे जहाँ में
बाज़ार मैं दुकान मैं खरीदार मैं

रखती थी करवाचौथ पे रोज़ा भी वो कभी
तन्हा मनाता हूं सब वो त्योहार मैं

ईनाम जो मिलेगा वो ईनाम कोई और
औ उस की जीत मैं बना उस की हार मैं

मरने की आरज़ू है गर दिल की ये आरज़ू
लेता रहा हूं साँस कैसे बार बार मैं

आईने पे आज तंज़ कुछ इस तरह किए
चूर चूर वो हो गया हूं तार तार मैं

क्या कीजिए कत्ल के मुकद्दमे यहाँ
खुद पे सवार मैं हूं खुद का शिकार मैं

सूखे हरे ये फूल सब उस की किताब में
चुनता रहा ज़मीन के सब ताज़ा खार मैं

उस से क्या मिलूं या खुद से क्या मिलूं
उस का सुकून मैं ना मेरा करार मैं

ले गये रकीब औ मैं सब उस की दौलतें
जीवन के रंग वो औ जीवन का भार मैं

दुनिया के ज़हर मुझ में आज आ के भर गये
रखता हूं अब वक़्तेसफर कोई कटार मैं

ली थी चार दिन हँसी मैने जो क़र्ज़ में
चुका नही सका कभी अब तक उधार मैं

दुनिया जहाँ के रुतें मुझ में ही बस गयीं
इस की खिजां मैं बना उस की बाहर मैं

तन्हा गुज़ारनी ना पड़े उस को ज़िंदगी
रहने लगा हूं आजकल अक्सर बीमार मैं

'मासूम' देखनी थीं मुझे ऐसे भी शादियाँ
डोली में है वो और उस का कहार मैं

2 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

'मासूम' देखनी थीं मुझे ऐसे भी शादियाँ
डोली में है वो और उस का कहार मैं

Ati Sundar !

ओम आर्य said...

bahut khubsoorat rachana padhakar mazaa aa gaya ..........atisundar