Saturday, August 15, 2009

जय हिंद


आज स्वतंत्रा दिवस के अवसर पर एक शहीद का बयान लाया हूँ और एक नेता के साथ बातचीत है है ये बयान

आशा करता हूँ उसके मन की बात समझने की कोशिश करेंगे आप लोग
जय हिंद
अनिल

मुझे जिस झंडे को बचाने का शौक था
तुम्हे बस उसको फ़ाहराने का शौक था
ज़रूरी था उसकी हिफ़ाज़त में जान देना
वरना मुझे भी कब मर जाने का शौक था

हम दोनों में से एक का बहकना ज़रूरी था
दिल में किसी जुनून का रखना ज़रूरी था
तुम जिस के साज़दे में थे उससे उलझाना ज़रूरी था
आज़ादी का मानी समझना ज़रूरी था

मेरा हिमालय भी वहाँ था
मैं पहरे पर जहाँ था
दोनो में से एक सर काटना ज़रूरी था
हिमालय तो मेरे घर की दीवार है इस लिए
मेरा ही ज़िंदगी से मिटना ज़रूरी था

मेरी फ़ना पर अफ़सोस मत करना
तुम्हे बस ज़िंदगी प्यारी है
तुम मेरी तरह नही मरना
मेरी फ़ना पर अफ़सोस मत करना

तुम्हारी भी ज़िंदगी की हिफ़ाज़त
की ज़िम्मेदारी उठाएँगे
मैं मेरे लहू की बूँदों में जुनूनी नस्ल छोड़ आया हूँ
उसी नस्ल के लोग आगे आएँगे
तुम्हे ज़िंदा रख्खेंगे आज़ादी बचाएँगे
उन के ज़ज़्बे उन के उसूल हैं
उसूल निभाएँगे
तुम बस फहराते रहना इस को
वो ये झंडा बचाएँगे

3 comments:

शशि "सागर" said...

kya bat hai sir ji...
wakai apne jawaano ka desh prem dekh sir uncha aur seena chauda ho jata hai...
aapne bakhubiu ek jawaan ki bhawnaon ko shabd diya hai.
jai hind..
bande matram...

masoomshayer said...

shashi bahut pyar se kavita ko padha bahut bahut dhnavaad

Anonymous said...

aaj aap ne meri aankho mei wah umeed jaga di..mujhe Hindustaan ke kan kan se pyaar hai.....aap ki awaz se bhi bahut pyaar hai.....apne poorwajon ka charan sparsh........aap ki us ungalio ko choomti rahoo...yahi iksha hai........kalam rukne na dena.......aur prerna dete rahna.......Jai Hind!!!!!!!!!!!!!! Bande Matram