Thursday, September 26, 2013

सिखायेगा/sikhayega

सिखायेगा


मेरे हर अश्क़ को आँखों से वो रिसना सिखायेगा
फकीरों सा था जो गम वो उसे बिकना सिखायेगा

तेरे बाज़ार में मुझ को भी वो टिकना सिखायेगा
कोई शायर ये कहता है मुझे लिखना सिखयेगा

मेरे गीतों में खुश्बू है वो ऐसा मानता तो है
गुलबों को मेरे अब वो ज़रा बिकना सिखायेगा

किसी कोने में रुक कर आज तक देखा है दुनिया को
बहुत देखा मगर कहता है अब दिखना सिखायेगा

मुझे जीने दे बाकी जो ज़रा सी ज़िंदगी अब है
बचे दो चार दिन में तू मुझे कितना सिखायेगा?
                                                                                      
अमल में ला सकूँगा मैं ये वादा तो नही करता
मगर वादा है सीखूंगा मुझे जितना सिखायेगा


mere har ashq ko ankhon se wo risanaa sikhaayegaa
fakeeron sa tha jo gam wo use bikanaa sikhaayegaa

tere bazar men mujh ko bhee wo tikanaa sikhaayegaa
koyee shayar ye kahata hai mujhe likhanaa sikhayegaa

mere geeton men khushboo hai wo aisa mantaa to hai
gulabon ko mere ab wo zaraa bikanaa sikhaayegaa

kisee kone men ruk kar aaj tak dekhaa hai duniyaa ko
bahut dekhaa magar kahata hai ab dikhanaa sikhaayegaa

mujhe jeene de bakee jo zaraa see zindgee ab hai
bache do char din men too mujhe kitnaa sikhaayegaa?

amal men laa sakoongaa main ye wada to nahee karta
magar wada hai seekhoongaa mujhe jitnaa sikhaayegaa


Friday, January 13, 2012

tumhara chehra

khoobsoorat see hai too apnee tarah

kaisee aur se kaise chehraa milaoon

kisee khab ka koyee ahsas hai too

tujhe dekahne main neendon men jaoon


ye dil boltaa hai teree har udasee

mere man men rakh loon ansu bahaoon

zamee se falaq tak rahega jo kayam

koyee aisa tujh se main rishtaa banaoon


badhaa doon jo ye hath tere samane men

hathelee men meree teraa hath paaoon

kisee kee nahee hai apnee to hai too

tujh ko main kaise rujh se hee churaoon?


khoobsoorat see hai too apnee tarah

kaisee aur se kaise chehraa milaoon

Tuesday, October 11, 2011

दीवारों में इक दर भी हो

दीवारों में इक दर भी हो
चार-दीवारी अब घर भी हो

तुम को शंकर माना क्यों कि
तुम थोड़े से पत्थर भी हो

अंदर अंदर भीगे बरसों
बारिश अब के बाहर भी हो

दिल को हीरा माना तुम ने
क्या जाने ये पत्थर भी हो

दुनिया पर है जादू मेरा
मन ये चाहे तुम पर भी हो

शेर समझ के इस को पढ़ते
क्या जाने ये मंतर भी हो

मुझ में तुम, पर खोज रहा हूँ
शायद मुझ से बाहर भी हो

इस में ही अब वक़्त गुज़रता
अब दफ़्तर में इक घर भी हो

लब पे जो था ग़ज़लों में है
क्या जाने कुछ अंदर भी हो

दुनिया में भी जा कर देखें
कोई तुम सा सुंदर भी हो

दुनिया से मासूम निभाते
कुछ कुछ तो तुम शायर भी हो

Friday, July 29, 2011

आज के लड़के/aaj ke ladke


या तो किसी साइकिल से या नाव पे चढ़के
इसकूल को जाते थे कभी गाँव के लड़के

आज की नसलें तो बस नज़र चुराती हैं
कल मिलते थे बुजुर्गों से वो आप ही बढ़ के

इक भाई के साए में इक भाई जिया था
वो दौर ही ऐसा था पल जाते थे कड्के

विदेशी कोई दफ़्तर अब चाकर इन्हे रख ले
किया खुद को बहुत काबिल रगड़ रगड़ के

काँपते हाथों को नही थामा कभी आ के
सीखे थे कभी चलना यही हाथ पकड़ के

खुद पे खिले फूलों से सारे मारासिम हैं
भूल गये हैं अब वो रिश्ते थे जो जड़ के

जो कुछ भी इन्हे आप अभी दे नही सकते
सब हासिल तो करेंगे कल आप से लड़ के

आवाज़ मेरे दिल की कब शहर में सुनती है
नानी के घर जा कर दिल आज भी धड़ के

थक गये थे जब भी वो तब इस के सहारे थे
दीवार गिरा दी फिर दीवार पे चढ़ के

'मासूम' मनाएंगे ना तुम को कभी आ कर
कुछ भी नही पाओगे तुम इन से बिगड़ के



Monday, June 27, 2011


जब तक साथ रहे सोये थे
इक चादर में हम दोनो,
आज अकेला ही उस को क्यों
इस चादर में लिपटाया है
क्या ये जिस्म पराया है?
मुझ को साँसे सुनती हैं
सब कहते है ये साया है

मेरे लिए मुह खोला है
अभी लगा ये कुछ बोला है
मेरे सपनो ने छेड़ा तो
पलकों को झपकाया है
मुझ को साँसे सुनती हैं
सब कहते है ये साया है



मुझे लिपटाना है इस से अब
दुनिया से शरमाना क्यों
मुझ से अलग किया कैसे और
इस दर्ज़ा बेगाना क्यों
क्यों ऐसे छला हैं मुझ को
क्यों इतना भर्माया है
मुझ को साँसे सुनती हैं
सब कहते है ये साया है



अब किसी की बात नही सुन नी
दुनिया ने ग़लत बताया है
मुझ से बाबस्ता है अब भी वो
मेरे इस जिस्म का साया है
दुनिया पागल कहती है
वो मिट्टी है पराया है
मुझ को साँसे सुनती हैं
सब कहते है ये साया है

Thursday, May 12, 2011

अजीब कशमकश में हूं


रेत का समंदर था
नाव चलाने की कोशिश की
बिना बाज़ुओं की दीवार थी
लिपट जाने की कोशिश की

साँसों में रेत भर गयी
माथे पे चोट है
अब मुझे भी ये लगाने लगा है
मेरी किस्मत में खोट है

प्यार तो मेरा था
तू किस लिए निभाती
प्यास भी मेरी अपनी
बाहों में कैसे आती

अपनी शिकस्त का अब
इल्म हो रहा है
छिप छिप के कही मुझ से
मेरा मन रो रहा है

तेरे शहर में रह के
मन को कहाँ मनाऊँ
खुद से पूछता हूं
दुनिया से क्यों ना जाऊं

कभी नही रहूं तो
मुझ को ना तू भुलाना
चाहता था तुझ को
पागल सा इक दीवाना

अधूरी सी आज मुझ में
मरने की आरज़ू है
मर के तुझे है खोना
और ज़िंदगी में तू है

रेत के समंदर से
गुज़र भी नही सकता
रेत की लहरों में
ठहर भी नही सकता
अजीब कशमकश में हूं
जी भी नही सकता
मर भी नही सकता

orkut - तुझे देख लूं/tujhe dekh loon

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