रेत का समंदर था
नाव चलाने की कोशिश की
बिना बाज़ुओं की दीवार थी
लिपट जाने की कोशिश की
साँसों में रेत भर गयी
माथे पे चोट है
अब मुझे भी ये लगाने लगा है
मेरी किस्मत में खोट है
प्यार तो मेरा था
तू किस लिए निभाती
प्यास भी मेरी अपनी
बाहों में कैसे आती
अपनी शिकस्त का अब
इल्म हो रहा है
छिप छिप के कही मुझ से
मेरा मन रो रहा है
तेरे शहर में रह के
मन को कहाँ मनाऊँ
खुद से पूछता हूं
दुनिया से क्यों ना जाऊं
कभी नही रहूं तो
मुझ को ना तू भुलाना
चाहता था तुझ को
पागल सा इक दीवाना
अधूरी सी आज मुझ में
मरने की आरज़ू है
मर के तुझे है खोना
और ज़िंदगी में तू है
रेत के समंदर से
गुज़र भी नही सकता
रेत की लहरों में
ठहर भी नही सकता
अजीब कशमकश में हूं
जी भी नही सकता
मर भी नही सकता
17 comments:
बहुत खूब .....
ये कशमकश बनी रहे .....
आपकी तस्वीर देख याद आ गया .....
shukriyaa heer
Hmmmm zindagi ki vashtaviktaye darshaati hai.. dard jo lafzo se chhalak raha hai.
waha bahut khub..............har bar ki tarhe...kamal likha aapne anil ji
kamal ...kamal sach mei
mehek bahut bahut shukriya
anju bahut bahut dhanyavad belog par dobara se aane kee himmat dee mujhe
kya baat he ik aag ka dariya hai doob k jana hai
shukriyaa mohita
vaise kuch bolne ki jaroorat hai kya......as rachna khud hi bol rahi hai......bahut bahut acchi lines hain
Achha hai Anil ji
रेत के समंदर से
गुज़र भी नही सकता
रेत की लहरों में
ठहर भी नही सकता
bahuuuuuut khoob ,maza aaa gaya perker....
rewa shukriyaa
neeraj dhanyavad
archna ajee abhaar aap kaa
bahut khoob
shukriya leena
Anil ji namaste
Barso dhoonda aapko
Iss Jaal ke samandar me
Aaj jaakar aapka pata Milaa
Aur kuchh yun mila ke
Parh kar Maja aagaya
Post a Comment