शुरू में यहाँ पर तू थी या तेरा साया
और फिर कहीं आसमान से मैं आया
सच है कि तब कौन मेरा था?
जहाँ से मैं आया अंधेरा ही अंधेरा था
आँख खोली तो उजाले ही उजाले
उजालों के दरमियाँ थी तू
मैं जानता ही नही था
अब क्या कहूँ अब क्या करूँ?
फिर जब मैने चलना शुरू किया
वक़्त ने करवट बदलना शुरू किया
मैं अब तक भी कौन था
या तुतलाता था बस या मौन था
तेरे सिवा कौन पहचनाता था
तेरे सिवा किस से पहचान थी
ऐसा लगा था जैसे अब भी मैं तुझ में था
तुझ में ही मेरी जान थी
तू मुझे हँसाती तू मुझे रूलाती
अंगुली पकड़ कर स्कूल छोड़ने जाती
तुझ से पहचान थी पर तुझे जान नही पाया
बार बार यही सवाल ज़हन में आया
सच में यही सवाल कि तू सब कुछ क्यों करती है?
किस के लिए जीती है किस के लिए मरती है?
तूने मुझ में ऐसा क्या पाया?
मां मुझे कभी भी समझ नही आया
तेरे सिवा घर के लिए कोई भी
इतनी कुर्बानी नही करता था
मैं पत्थर की तरह सोचता रहता
पर आँखों में पानी नही भरता था
मेरे जैसे छोटे से बच्चे के लिए
इतने बड़े बड़े काम?
ना कोई कीमत ना ही ईनाम?
धीरे धीरे मैं अच्छा दिखने लगा
अच्छा पढ़ने लगा अच्छा लिखने लगा
बस तेरी वजह से तेरी मेहनत से
मैने क्या क्या नही पाया
पाया था तेरी सोहबत से
मेरे हर अच्छे काम पर ईनाम आने लगा
मैं खुद को बड़ा कहने लगा
और मेरी नज़र में
तुझ से पहले मेरा नाम आने लगा
और तुझ को मैं भुलाने लगा
तेरी कुर्बानी धुंधला गयी
तू निकल गयी मुझे में से
मेरी अपनी ही रूह आ गयी
मेरे अंदर मंदिर मिट रहा था
बस मेरे अंदर मेरा अपना ही घर हो रहा था
तूने मुझे क्या बनाया था
और मैं एक जानवर हो रहा था
पर आज मुझे मेरा इंसान लौटाना है
मां मुझे फिर तेरे पास आना है
सब तेरे कारण है अब ये बताना है
कितनी बार तेरा मैने अपमान किया
लोगों ने देखा भी तूने कहाँ ध्यान दिया
कितना बुरा बन के मैं पेश आता था
मैं परेशान हूं
तेरा मन बस यही खुद को यही समझाता था
और सब भूल जाता था
मैं बौना हूं खुद को समझाना होगा
मा तुझे देखेने के लिए
हर बार ये सर ऊपर उठाना होगा
मेरे उस ज़हीन होने को भुला दे माँ
इस बुद्धू बच्चे को गले से लगा के रुला दे माँ
अगर मैं ज़रा सा भी दुनिया को जानता हूं
उस का सबब मैं अब तुझ को ही मानता हूं
तेरे पुराने लफ्ज़ मेरे नये दर्द को सहलाते हैं
और अपना किया याद आने से आँसू बहते जाते हैं
मेरे ये गीत सुन ले माँ मेरी तुतलाती आवाज़ सुन ले
मैने लिख डाली है इक आरती तुझ पे वो आज सुन ले
आज तन का नही मन का सारा मैल भी चुन ले
तू जिस ने मेरा मैल भी हंस के साफ किया
हंस के ना सही रो के कह दे ना कि जा तुझे माफ़ किया
कह दे ना मुझे माफ़ किया
पर तेरे लायक तो मेरी ये फरियाद भी नही है
मैंने क्या क्या बुरा किया तुझे तो
इतना अब याद भी नही है
6 comments:
बेहतरीन कविता....के लिए साधुवाद !
"मां"
तपती धूप में बन के साया,
हर दुःख से मुझे बचाया,
खुद ग़मों के पहाड़ उठाये,
सारे सुख मुझ को पहुंचाए !
bahut sunder rachna.
shubhkamnayen
beautifully written :)
shukriya rah
prrity dhanyavad
mehek shukriya
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