या तो किसी साइकिल से या नाव पे चढ़के
इसकूल को जाते थे कभी गाँव के लड़के
आज की नसलें तो बस नज़र चुराती हैं
कल मिलते थे बुजुर्गों से वो आप ही बढ़ के
इक भाई के साए में इक भाई जिया था
वो दौर ही ऐसा था पल जाते थे कड्के
विदेशी कोई दफ़्तर अब चाकर इन्हे रख ले
किया खुद को बहुत काबिल रगड़ रगड़ के
काँपते हाथों को नही थामा कभी आ के
सीखे थे कभी चलना यही हाथ पकड़ के
खुद पे खिले फूलों से सारे मारासिम हैं
भूल गये हैं अब वो रिश्ते थे जो जड़ के
जो कुछ भी इन्हे आप अभी दे नही सकते
सब हासिल तो करेंगे कल आप से लड़ के
आवाज़ मेरे दिल की कब शहर में सुनती है
नानी के घर जा कर दिल आज भी धड़ के
थक गये थे जब भी वो तब इस के सहारे थे
दीवार गिरा दी फिर दीवार पे चढ़ के
'मासूम' मनाएंगे ना तुम को कभी आ कर
कुछ भी नही पाओगे तुम इन से बिगड़ के
इसकूल को जाते थे कभी गाँव के लड़के
आज की नसलें तो बस नज़र चुराती हैं
कल मिलते थे बुजुर्गों से वो आप ही बढ़ के
इक भाई के साए में इक भाई जिया था
वो दौर ही ऐसा था पल जाते थे कड्के
विदेशी कोई दफ़्तर अब चाकर इन्हे रख ले
किया खुद को बहुत काबिल रगड़ रगड़ के
काँपते हाथों को नही थामा कभी आ के
सीखे थे कभी चलना यही हाथ पकड़ के
खुद पे खिले फूलों से सारे मारासिम हैं
भूल गये हैं अब वो रिश्ते थे जो जड़ के
जो कुछ भी इन्हे आप अभी दे नही सकते
सब हासिल तो करेंगे कल आप से लड़ के
आवाज़ मेरे दिल की कब शहर में सुनती है
नानी के घर जा कर दिल आज भी धड़ के
थक गये थे जब भी वो तब इस के सहारे थे
दीवार गिरा दी फिर दीवार पे चढ़ के
'मासूम' मनाएंगे ना तुम को कभी आ कर
कुछ भी नही पाओगे तुम इन से बिगड़ के
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