Friday, July 29, 2011

आज के लड़के/aaj ke ladke


या तो किसी साइकिल से या नाव पे चढ़के
इसकूल को जाते थे कभी गाँव के लड़के

आज की नसलें तो बस नज़र चुराती हैं
कल मिलते थे बुजुर्गों से वो आप ही बढ़ के

इक भाई के साए में इक भाई जिया था
वो दौर ही ऐसा था पल जाते थे कड्के

विदेशी कोई दफ़्तर अब चाकर इन्हे रख ले
किया खुद को बहुत काबिल रगड़ रगड़ के

काँपते हाथों को नही थामा कभी आ के
सीखे थे कभी चलना यही हाथ पकड़ के

खुद पे खिले फूलों से सारे मारासिम हैं
भूल गये हैं अब वो रिश्ते थे जो जड़ के

जो कुछ भी इन्हे आप अभी दे नही सकते
सब हासिल तो करेंगे कल आप से लड़ के

आवाज़ मेरे दिल की कब शहर में सुनती है
नानी के घर जा कर दिल आज भी धड़ के

थक गये थे जब भी वो तब इस के सहारे थे
दीवार गिरा दी फिर दीवार पे चढ़ के

'मासूम' मनाएंगे ना तुम को कभी आ कर
कुछ भी नही पाओगे तुम इन से बिगड़ के



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