Sunday, August 23, 2009

यूं ही खत लिखते रहना


तुम मुझे यूं ही खत लिखते रहना
फूलों की तरह किताबों मैं संभालूंगी
हर शब एक लफ्ज़ पढ़ूँगी और
हर शब नये मानी निकालूंगी

तुम मुझे यूं ही खत लिखते रहना
हर लफ्ज़ में मैं तुम को पालूंगी
तुम फिर मिलो की ना मिलो मुझ को
मैं अल्फ़ाज़ को बच्चों की तरह पालूंगी

तुम मुझे यूं ही खत लिखते रहना
मैं खामोशी मैं ही हर बात छिपा लूँगी
मुमकिन है किसी रोज़ मेरा भी खत मिले
तुम्हे खुद को कब तक रोकूंगी कब तक टालून्गी
हाँ तुम मुझे यूं ही खत लिखते रहना

internet par meree pahalee rachana

aaj sabhee purane kagazon par nazar dalee tab maien dekha 25/12/2005 ko mails ko chats ko chhoD diya jaaye to net par kaheen ye meree pahalee rachana thee kitnee yaaden judee hian mere sath kitne log judate gaye is ke baad aaj main wahee rachana tahan aap se bant raha hoon aur usee bhoomika ke sath jo sabse pahale likhee thee main mujhe is kavita par 2 tipanniyan mileen wo log aaj bhee mere sath hain jinhoen sab se pahale yahan tipannee dee main wo tipanniyan bhee yahan rakahna chahoonga

Anil masoomshayer (23/08/2009)

kabhee lagata hai mujh main aisa hai hee kya ki khud ko shayer kahoon kavi kahoon? bas main ek zameen hoon shayed kagaz kee aur koyee mujeh main aa ke geeton ke beej bo jata hai kab se likh raha hoon maloom nahee. par meree prerana sahir hain

Anil (25/12/2005)

मैं लाख इंतज़ार करूँ तो क्या
मेरी राह देखेगा कौन
मैं शब ओ सहर रोया तो क्या
मेरी आह देखेगा कौन

आँखें तन्हा आँसू तन्हा
दूर दूर तन्हाई है
गर अपना साथ भी झूठा था
हर रिश्ता ही परछाई है

इतने बरस का साथ रहा
एक रात में छूट गया
हर कसम कहीं बस दफ़्न हुई
हर वादा जैसे टूट गया

पहले ये अहसास हुया होता
मैं तुझ से लिपट के रो लेता
जिन दिनो मैं तू मेरा होता था
मैं सारा माज़ी धो लेता

हुआ था जो भी उस शब को
ख्वाबों में सोचा ना था
मेरे सिवा तुझ पर कल तक
कोई और असर होता ना था

आज मेरे सब रंग गये
रफ़्ता रफ़्ता बेनूर हुया
तू मुझ को चेहरा देता था
तू काहे इतना दूर हुआ

जब हर पल मेरे साथ था तू
मैं तुझ को दुख भी देता था
मेरी सख्ती कम कब होती थी
तेरी आँख में आँसू होता था

जो कुछ भी यहाँ करे कोई
यहीं फ़ैसला होता है
कल तेरी आँख में आँसू था
अब मेरा दिल ये रोता है

अब किस से मैं फरियाद करूँ
गर सज़ा मुझे ये सख़्त लगे
ज़ख़्मों को भरने मैने जाने
कितने जन्मों का वक़्त लगे

हर पल रह देखता हूं मैं अब
हर लम्हा आँसू बहते हैं
ना मैं इन को सुनता हूं अब
ना ये कुछ भी कहते हैं

सब बातें तुझ से होती थीं
अब तू भी मसरूफ़ हुआ
ना लब का कोई लफ्ज़ मिला
दिल मैं भी ना कोई दुआ

अब ऐसे ही जीना होगा
अब ऐसे ही मारना है
हयात है सागर कज़ा किनारा
मुझ को पर उतरना है

पर कैसे यकीं दिलाऊं खुद को
अब सब ऐसे ही करना है
तन्हा ही मुझ को जीना है
तन्हा ही मुझ को मरना है

meena jee

bahar ke kise emulk men rahtee hain ooper wala in kee sehat zaldee theek kare bahut achhee nazmen khatee hain

Meena comments :
Bohut hee piyari nazm likhy aap nai...........
maiN samajhty huN dil sai nikly huyii baat aser rakhty hai....!!!

shairy kai quaad-o-zavaabat apni jagah..........lakin............dil ki baat............shayed in ki bhi muhtaaj nahiN hoty..........!!!

cheers
meena


aap delhi se hain bahut achee shayree kee samjh rakhtee hain kayee dino baad pichale dino aap se baat huyee

Honey comments :
ankhen tanaha ansoo tanha
door door tanhayee hai
gar apana sath bhee jhotha tha
har rishta hee parchayee hai


"bahut hi khoobsurt hai ye tanhai bhi
aap ki yaad aap ka armaan aur aap ki hi parchaain bhi"

dear Anil,

bahut hi khoon surat alfaaz, really great writting.

Regards,

Honey.

Wednesday, August 19, 2009

उस का कहार मैं


उस के लए हूं राह की कोई दीवार मैं
उस का प्यार हूं तो हूं गुनहगार मैं

जो दिल में है बसा वो गम कोई और है
आँख से जो गिर गयी आँसू की धार मैं

कैसे बिक सकूँगा अब ऐसे जहाँ में
बाज़ार मैं दुकान मैं खरीदार मैं

रखती थी करवाचौथ पे रोज़ा भी वो कभी
तन्हा मनाता हूं सब वो त्योहार मैं

ईनाम जो मिलेगा वो ईनाम कोई और
औ उस की जीत मैं बना उस की हार मैं

मरने की आरज़ू है गर दिल की ये आरज़ू
लेता रहा हूं साँस कैसे बार बार मैं

आईने पे आज तंज़ कुछ इस तरह किए
चूर चूर वो हो गया हूं तार तार मैं

क्या कीजिए कत्ल के मुकद्दमे यहाँ
खुद पे सवार मैं हूं खुद का शिकार मैं

सूखे हरे ये फूल सब उस की किताब में
चुनता रहा ज़मीन के सब ताज़ा खार मैं

उस से क्या मिलूं या खुद से क्या मिलूं
उस का सुकून मैं ना मेरा करार मैं

ले गये रकीब औ मैं सब उस की दौलतें
जीवन के रंग वो औ जीवन का भार मैं

दुनिया के ज़हर मुझ में आज आ के भर गये
रखता हूं अब वक़्तेसफर कोई कटार मैं

ली थी चार दिन हँसी मैने जो क़र्ज़ में
चुका नही सका कभी अब तक उधार मैं

दुनिया जहाँ के रुतें मुझ में ही बस गयीं
इस की खिजां मैं बना उस की बाहर मैं

तन्हा गुज़ारनी ना पड़े उस को ज़िंदगी
रहने लगा हूं आजकल अक्सर बीमार मैं

'मासूम' देखनी थीं मुझे ऐसे भी शादियाँ
डोली में है वो और उस का कहार मैं

Saturday, August 15, 2009

दिल मेरा बालक सा



सागर तो गहरा है
तूफान का पहरा है
दिल मेरा बालक सा
साहिल पर ठहरा है

तुम नाव बनो मेरी
उस पार को जाना है
इस पार सराय है
उस पार ठिकाना है
तुम से जो मेरा है
रिश्ता वो गहरा है
दिल मेरा बालक सा
साहिल पर ठहरा है

मैं बालक तेरा हूं
तू दूर पिता क्यों है
तुझ में इक जीवन है
तो मुझ में चिता क्यों है
ये भेद अगर कुछ है
ये भेद भी गहरा है
दिल मेरा बालक सा
साहिल पर ठहरा है

हर दर्द ये झूठा है
हर सुख भी झूठा है
सब झूठ है इस जग में
तू जब तक रूठा है
दिल में है दिल तेरा
चेहरे में चेहरा है
दिल मेरा बालक सा
साहिल पर ठहरा है

मेरे पास तो आयो ना
मुझे पास बुलाओ ना
मैं तो इक निर्बल हूं
मुझे और सताओ ना
मुझे अमृत दे दो तुम
मेरा जीवन सहरा है
दिल मेरा बालक सा
साहिल पर ठहरा है

तेरा नाम ही अमृत है
तेरा नाम ही शाक्ती है
तेरा नाम भवर भी है
तेरा नाम ही मुक्ती है
जब गौर किया जाना
सागर तेरा चेहरा है
दिल मेरा बालक सा
साहिल पर ठहरा है

जय हिंद


आज स्वतंत्रा दिवस के अवसर पर एक शहीद का बयान लाया हूँ और एक नेता के साथ बातचीत है है ये बयान

आशा करता हूँ उसके मन की बात समझने की कोशिश करेंगे आप लोग
जय हिंद
अनिल

मुझे जिस झंडे को बचाने का शौक था
तुम्हे बस उसको फ़ाहराने का शौक था
ज़रूरी था उसकी हिफ़ाज़त में जान देना
वरना मुझे भी कब मर जाने का शौक था

हम दोनों में से एक का बहकना ज़रूरी था
दिल में किसी जुनून का रखना ज़रूरी था
तुम जिस के साज़दे में थे उससे उलझाना ज़रूरी था
आज़ादी का मानी समझना ज़रूरी था

मेरा हिमालय भी वहाँ था
मैं पहरे पर जहाँ था
दोनो में से एक सर काटना ज़रूरी था
हिमालय तो मेरे घर की दीवार है इस लिए
मेरा ही ज़िंदगी से मिटना ज़रूरी था

मेरी फ़ना पर अफ़सोस मत करना
तुम्हे बस ज़िंदगी प्यारी है
तुम मेरी तरह नही मरना
मेरी फ़ना पर अफ़सोस मत करना

तुम्हारी भी ज़िंदगी की हिफ़ाज़त
की ज़िम्मेदारी उठाएँगे
मैं मेरे लहू की बूँदों में जुनूनी नस्ल छोड़ आया हूँ
उसी नस्ल के लोग आगे आएँगे
तुम्हे ज़िंदा रख्खेंगे आज़ादी बचाएँगे
उन के ज़ज़्बे उन के उसूल हैं
उसूल निभाएँगे
तुम बस फहराते रहना इस को
वो ये झंडा बचाएँगे

Thursday, August 13, 2009

मासूम तेरी बातें


कटार से बच के और कटार के पीछे
वो छिपा भी तो इक तलवार के पीछे

तस्वीरों के लिए इसमें कीलें ना गाडिए
सहारा लिए खड़ा है कोई दीवार के पीछे

ये फासला हमारा तय कैसे करेंगे दोनो
तू सैंकड़ो में अव्वल मैं हज़ार के पीछे

कोई तेज़ रौ गाड़ी ले के तुझे गयी थी
हम दौड़ते हैं तब से हर कार के पीछे

जिन का शहर में कफ़न का कारोबार है
हसरत लिए खड़े हैं उस बीमार के पीछे

वो सर भी माँग ले तो हंस के उसे दूँगा
लेकिन वो पड़ा है इस दस्तार के पीछे

लिपट के रो रहें हम इस दीवार से
इक तस्वीर तेरी लगी है दीवार के पीछे

मुहब्बत हो गयी उस को ये भूल जा
सौ सौ इनकार खड़े हैं इकरार के पीछे

जो कहा है दिल ने लिखते रहे वही हम
कलम नही चली ये बाज़ार के पीछे

मासूम तेरी बातें जिंदा ताजमहल हैं
आगरा कौन जाये फकत मज़ार के पीछे

पत्थर का घर याद करेगा

शीशमहल में अभी तो जाने कितने दिन बर्बाद करेगा
जब पत्थर की बारिश होगी पत्थर का घर याद करेगा

खुश्बू रंग मेरे सब ले कर पहले चला गया है वो
ये पतझड़ का मौसम आ के मुझ को क्या बर्बाद करेगा

मेरे साथ कभी कभी तो वो भी खुश हो जाता था
मुझको भुला दिया लेकिन कुछ लम्हे तो याद करेगा

छोड़ के मुझको गया था जिस दिन बात अनोखी पूछी थी
इतना अब बतला दे मुझ को तू क्या मेरे बाद करेगा

अपनी खुश्बू रंग भी अपना खारों को वो देता है
मुरझा गया जिस दिन गुन्चा हर काँटा ये याद करेगा

क्या क्या किस के साथ किया ये तो खबर मुझे भी थी
इतना पर मालूम नही था मुझको भी बर्बाद करेगा

मेरे लिए बहुत कुछ उस को करना है वो कहता है
आज नही गर करता तो क्या मर जाने के बाद करेगा

मैने तुझ को छोड़ दिया था जिस दिन तूने जाना चाहा
मासूम पूछता है तुझसे तू दिल को कब आज़ाद करेगा

Wednesday, August 12, 2009

बस तू

गमों की धूप मिली अश्कों का साया है
तेरे प्यार मैं मैने और क्या कमाया है?
ये सर्माया भी मैं दिल में संभालती हूं
ना दर्द को बेघर किया ना
आँखों से कभी अश्क निकलती हूं
तेरे ही सारे नक्श हैं तेरे ही ये अक्स हैं

जानती हूं जितने गम देगा मुझे
उतना ही दर्द से तू नीज़ात पाएगा
दर्द-ओ-गम से ना इनकार करूँगी कभी
सारी तल्खी तन्हा तू कैसे उठाएगा?

ये जो भी ईनाम दिए तूने
कब किसी और से बाँटे हैं
तेरे तोहफे में मैने कभी गिना ही नही
कितने फूल हैं कितने काँटे हैं
अगर तू अपने खार मुझे देता है
मुझे यही लगता है अपना प्यार मुझे देता है
प्यार ना होता मुझ से तो ये तल्खियाँ
कहीं भी तो छोड सकता था
कोई तो बात थी जो सारे आँसू मेरे लिए
संभाल के रखता था
तू जनता था कि तेरे आँसू मेरी आँखों मैं आए
तो ख्वाब हो जाएँगे
एक दिन आएगा ये सारे खार गुलाब हो जाएँगे

तू खफा होता है तो भी
तो बस प्यार देता है
दोनो मैं दुया होती है तेरी
गुलाब देता है या खार देता है
गमों की धूप मिली अश्कों का साया है
तेरे प्यार मैं मैने और क्या कमाया है?
इस के साथ ही गुज़रेगी ज़िंदगी ये मेरा सरमाया है

मेरे सिवा किसी के पास ये सौगात नही है
ये मुहब्बत की हक़ीक़त है जो मिली मुझ को
लफ़्ज़ों की कोरी बात नही है
मैने जन्मों तक मुहबाबत् की तब ही पाया है
ये जो गमों की धूप है अश्कों का साया है
मुझे इस गर्म धूप में और भीगे साए में
तू नज़र आया है
बस तू नज़र आया है

Monday, August 10, 2009


कहाँ कहाँ होंठों के निशान छोड गये तुम
बेजान एक जिस्म में जान छोड गये तुम
खुद से पूछती रही थी ये कि मैं कौन हूं?
आज मुझ में मेरी पहचान छोड गये तुम

तुम्हारे जन्म दिन पर


तुझ को जब कभी भी सोचा है
सोच को अधूरा पाया है
मेरी ज़िंदगी में तू है
मेरी सोच में तो बस एक साया है

तू आज के ज़माने में कहीं भी नही
तू फरिश्तों की छोड़ी हुई
नेकियों का गुलदस्ता है
कभी तू मेरी हमसफ़र है
कभी तू मेरे सफ़र का रस्ता है

मंदिरों के करीब से जब गुज़रता हूं
तेरा ही कोई अक्स उभरता है
तेरी ही तो आवाज़ सुनाई देती है
जब कोई आरती पढ़ता है

एक लम्हा भी अगर घर में ना रहे
पूरा घर परेशान होता है
कभी तू ज़िंदगी बन जाती है
कभी तू हो तो जीना आसान होता है

तू मेरे इस घर के लिए
हज़ार हज़ार रूप धरती है
मैं बस तुझे प्यार करता हूं
तू घर की हर ईंट पे मरती है

खुदा करे हमारा साथ बना रहे इसी तरह
कभी कोई फासला महसूस ना हो
हम साथ हैं तो हर लम्हा अच्छा मुहूरत है
कभी कोई एक पल मनहूस ना हो

फरिश्तों ने तुझे अदाएँ दी हैं हज़ारों
उन अदाओं से मुझको नवाज़ा करना
वस्ल के लम्हे हों कि हिज़ृ के,
बासी होते हैं
तू फिर मुहब्बत के लम्हों को ताज़ा करना

तेरे छूने से पल फिर खिल जाएँगे
हमे हमारे पुराने दिन रात मिल जाएँगे
ज़िंदगी ज़ख़्म नये भी देती रहेगी
तेरे छूने से वो ज़ख़्म सिल जाएँगे

Sunday, August 9, 2009

कुछ चाह लिया मैने


कुछ चाह लिया मैने
फिर उस चाहत के साथ हज़ारों कदम चली हूं
क्या मिल चुका क्या मिलने वाला है
ये सोच लिया तो लगा
अभी तो बहुत कम चली हूं

अभी और कदम बढ़ाऊँगी
जो मिला ही नही भी तक
उस तक जाऊंगी

कभी तुम खुश कभी कुछ खफा
कभी हम दोनो पूर-मुहब्बत कभी बेवफा
कितने ही रंग देखे रिश्ते ने
कितना ही हम दोनो बदलते रहे
पर ये सच है
एक दूसरे के लिए चल पड़े तो बस चलते रहे

आज तुम्हारे वादों के सहारे दुनिया को मना लिया है
लोगों ने तुम्हे मुझ को देने का मन बना लिया है
तो सारी थकान मिट गयी है
जोश ताज़ा है अब ताक़त नयी है

अब तुम तक आने के लिए
ज़िंदगी भर का सफ़र कर सकती हूं
ज़िंदगी के बाद की भी बात हो अगर
तो मर सकती हूं

मरने की बात पर नाराज़ हो ना?
अपनी ये खफगी भी मुझे दो ना
और मैं तुम्हे देती हूं वो सपने
जो तुम्हारी हां और दुनिया के
इकरार से आए हैं
जो मेरी इन आँखों में बहुत प्यार से आए हैं

इस बार इन सपनो को कुछ देर धूप में सुखाना
ये भीगे हुए हैं अभी गीले हैं
बहुत हसीन हैं मगर सीले हैं

क्यों कि तुम्हारी हां के बाद
दुनिया को मनाने से पहले
बहुत रोई हूं
जब तय हो गया कि सपने आएँगे
तब कहीं मैं सोई हूं
इस लिए सपनो में नमी है
तुम इन्हे सूखा भी देना पूरा भी करना
सपनो में जो भी कमी है
जो भी नमी है

तुम पर ये ख्वाब पुर करने की ज़िम्मेदारी है
मैं तुम्हरी हो चुकी सपने तुम्हारे हो चुके
अब ज़िंदगी की बारी है

कल हर एक सांस तुम से पूरी होगी
साँसों से साँसों की बस
एक सांस की दूरी होगी
कल हर एक सांस तुम से पूरी होगी

उस से बुरा


ये कह कर मुझ को रुला दिया
कि तूने माज़ी भुला दिया
जो किया तूने बुरा किया
उस से बुरा कि बता दिया

तुझ को हमेशा प्यार था
मुझे कितना ये ऐतबार था
बुरा किया ये प्यार तोड़े के
उस से बुरा कि जता दिया

ख्वाबों को तेरी जो दीद थी
मेरी नींदों की वही तो ईद थी
बुरा किया ख्वाब छीन के
उस से बुरा कि सुला दिया

तेरी आँखों के ये जो चिराग़ थे
मेरी मंज़िलों के सुराग थे
बुरा किया निगाहें फेर लीं
उस से बुरा चाँद भी छिपा दिया

तूने कितने ही मुझ को ग़म दिए
मैने आँसू फिर भी कम लिए
बुरा किया कि दामन छुड़ा लिया
उस से बुरा कि मुस्कुरा दिया

कुछ मासूम थी कुछ ज़हीन थी
मेरी रूह की जो भी ज़मीन थी
बुरा किया यहाँ हल चला दिया
उस से बुरा दर्द भी उगा दिया

जो भी मेरा अब हाल है
तेरी मुहब्बतों का कमाल है
बुरा किया मुझ को सँवारा नहीं
उस से बुरा आईना दिखा दिया

मिट्टी का दिल का गाँव था
हर दीवार पर तेरा नाम था
बुरा किया तूने पढ़ा नहीं
उस से बुरा कि मिटा दिया

जिसका भी अब ये गुनाह था
वक़्त सुबूत लम्हा गवाह था
बुरा किया हर गवाह हटा दिया
उस से बुरा सुबूत मिटा दिया

अगॅर्चे अब रिश्ता नहीं
ये दर्द पर जाता नहीं
जो कुछ हुआ वो बुरा हुआ
उस से बुरा कि तूने किया

गंगा जी


मुझ से मुझ को आज बचा लो गंगा जी
मेरे सब ये पाप सम्भालो गंगा जी

तुझ में आकर तेरा ही सब रूप धारूँगा
इस दूरी को ज़रा हटा लो गंगा जी

आग चिता की फिर न जला पाए मुझको
जल से अपने मुझे जला लो गंगा जी

परबत सागर चढ़ती उतरती रहती हो
मुझको अपने गले लगा लो गंगा जी

अपने सर माथे पर तुमको रख लूँगा
मुझको शंकर अगर बना लो गंगा जी

हर पापी को तुमने ही तो लहर किया है
अब तो मुझसे हाथ मिला लो गंगा जी

शीतल करना शीतल रहना आदत है
चाहे तुम दिन रात उबालो गंगा जी

हाथ जोड़ के मरने वाला माँग रहा है
घर में कुछ दिन और सम्भालो गंगा जी

खारे आँसू मन को खारा कर जाते हैं
अब तो आँखों में जल डालो गंगा जी

मैं चरणामृत सा सांझ सवेरे पीता हूँ
तुम मुझको परसाद बना लो गंगा जी

आज नही मैं द्वार तुम्हारे कल आऊंगा
मेरी खातिर प्यार बचा लो गंगा जी

कसम तुम्हारी खा के भी तो झूठ कहा है
अब तुम मेरी कसमें खा लो गंगा जी

उस बच्चे के माँ बापू हैं चाँद सिधारे
उस बच्चे को आप ही पालो गंगा जी

लहू की रंगत मेरी बातों में दिखती है
अपनी ही कोई कथा निकालो गंगा जी

बेचने वाले पानी को भी बेच रहे हैं
अपने इस जल को कहीं छिपा लो गंगा जी

तुम जो लिख दो कभी कहीं मैं वो बोलूँगा
मासूम सी इक ग़ज़ल बना लो गंगा जी