Monday, June 27, 2011


जब तक साथ रहे सोये थे
इक चादर में हम दोनो,
आज अकेला ही उस को क्यों
इस चादर में लिपटाया है
क्या ये जिस्म पराया है?
मुझ को साँसे सुनती हैं
सब कहते है ये साया है

मेरे लिए मुह खोला है
अभी लगा ये कुछ बोला है
मेरे सपनो ने छेड़ा तो
पलकों को झपकाया है
मुझ को साँसे सुनती हैं
सब कहते है ये साया है



मुझे लिपटाना है इस से अब
दुनिया से शरमाना क्यों
मुझ से अलग किया कैसे और
इस दर्ज़ा बेगाना क्यों
क्यों ऐसे छला हैं मुझ को
क्यों इतना भर्माया है
मुझ को साँसे सुनती हैं
सब कहते है ये साया है



अब किसी की बात नही सुन नी
दुनिया ने ग़लत बताया है
मुझ से बाबस्ता है अब भी वो
मेरे इस जिस्म का साया है
दुनिया पागल कहती है
वो मिट्टी है पराया है
मुझ को साँसे सुनती हैं
सब कहते है ये साया है